केला की खेती कैसे करें, कब की जाती है, सही समय, लागत, लाभ, लाइसेंस, मार्केटिंग (Banana Farming Business in Hindi, Plan, Investment, Profit, Benefit, License, Marketing, Time, Location)
केला भारत में आम के बाद मशहूर फल है। केले में विटामिनों सहित सभी प्रकार के पोषक तत्व शर्करा एवं खनिज लवण, कैल्शियम तथा फास्फोरस पाए जाते हैं। केले में कार्बोहाइड्रेट की मात्र अधिक तथा प्रोटीन व वसा की मात्र कम होती है। पके केले में विटामिन “ए” प्रचुर मात्र में एवं विटामिन “बी” व् “सी” कम मात्र में पाए जाते हैं। इसलिए केला उर्जा का प्रमुख स्रोत भी है।
केले का उपयोग पकने पर खाने, कच्चे फल की सब्जी बनाने, आटा बनाने और चिप्स बनाने में ही नहीं अपितु कई तरह के औषधि के रूप में भी किया जाता है। 60 डिग्री तापमान पर पकने पर भी इसके विटामिन नष्ट नहीं होते हैं।केला लगभग सभी लोगों को पसंद है।
इसलिए केले की मांग पूरे सालभर बनी रहती है। केले की खेती लगभग पूरे भारतवर्ष में की जा सकती है। अगर आप भी केले की खेती कर अच्छा आमदनी करना चाहते हैं तो आइये आज हम केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
भारत में केले की खेती महाराष्ट्र, गुजरात,तमिलनाडु, मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में बहुतायत से की जाती है। भारत में केले की खेती लगभग 8 लाख 60 हजार हेक्टेयर में की जाती है। भारत में केले का उत्पादन 3 हजार करोड़ टन से भी ज्यादा का होता है। केला 35 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन देता है।
केले की फसल 14 महीनो की होती है। केले की खेती करने के लिए जून महा में खेत को फसल के लिए तैयार किया जाता है और जुलाई महीने में खेतों की जुताई की जाती है तथा केला लगाने के लिए खड्डा खोद लिया जाता है।
जुलाई के पहले हफ्त में केले के पौधों की रोपाई शुरू कर देते हैं। रोपाई करते वक्त हमें दुरी का ध्यान रखना होता है। केले की रोपाई पौध से पौध की दुरी 6 फीट रखनी चाहिए।
केले की किस्में
उचाई के हिसाब से केले की तिन किस्म्मे होती हैं, छोटी ऊंचाई, मध्यम ऊंचाई और कुछ ज्यादा ऊंचाई
- छोटी ऊंचाई की किस्मे – रोबस्टा, ग्रेडनाइन, हरिछाल इनकी ऊंचाई 5 से 6 फुट या 7 फुट अधित से अधिक होती हैं। मतलब डेड से दो मीटर या सवा दो मीटर ही ऊँची होती हैं।
- माध्यम ऊंचाई – चंपा, काठकपूरा, कर्पुरवल्ली या सब्जी का केला ये किस्मे मध्यम ऊंचाई की होती हैं।
- अधिक ऊंचाई – उद्यम, लाल केला,इनकी ऊंचाई अधिक होती है।
उपयोगिता के आधार पर केले केले की किस्मे
सब्जी हेतु – कांच केला, नेंद्रन, बतीसा, भूरकेला, बेहुला और मनोहर हैं।
पके फल हेतु – Dwarf Cavendish, gros michel, चंपा, मालभोग, रोबस्टा और लाल केला हैं।
केले की खेती के लिए मिटटी तथा जलवायु?
गर्मतर एवं सम जलवायु केले की खेती के लिए उत्तम रहती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी केले की खेती सफल रहती है।
मिटटी – केले की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिटटी जिसका PH 6.5 से 7.5 अच्छी मानी जाती है। मिटटी गहरी और उपजाऊ होनी चाहिए, जिसमे कार्बनिक पदार्थों की मात्र अधिक होनी चाहिए। केले भारी पोषक तत्व वाले होते हैं इसलिए नियमित खाद की आवश्यकता पड़ती है।
जलवायु – वैसे तो केले को विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छी पैदावार के लिए उच्च आद्रता के साथ गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। केला एक उष्णकटिबंधीय पौधा है इसलिए इसे गर्म आद्र जलवायु में ही इसकी खेती करनी चाहिए। तापमान की बात करें तो केले की खेती के लिए आदर्श तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस अच्छी मानी जाती है।
केले हवा के प्रति भी संवेदनशील होते हैं इसलिए इनकी खेती जिस स्थान में हवा तेज न चलता हो उस स्थान पर इसकी खेती अच्छी होती है।
केले की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
केले की खेती के लिए खेत एवं मिटटी की तयारी अति महत्वपूर्ण है क्योंकि केले की खेती के लिए आवश्यक मापदंड पूरा किये बिना केले की सफल खेती नहीं की जा सकती है।
आइये जानते हैं केले की खेती के लिए मिटटी एवं खेत की तयारी कैसे करें?
- मिटटी की जाँच- जिस खेत में आप केले की खेती करना चाहते हैं उस खेत की सर्वप्रथम मिटटी की जाँच करवा लीजिये। इससे मिटटी में मौजूद पोषक तत्व और PH Level का पता चलेगा। आप मिटटी जाँच के लिए भारत सरकार की कृषि बिभाग शाखा या कसी प्राइवेट मिटटी परिक्षण केंद्र पर भी जा सकतें हैं।
- मिटटी का उपचार- मिटटी परिक्षण का परिणाम आ जाने पर अब आपको आवश्यकता अनुसारअपने खेत का उपचार करना है। अगर मिटटी अम्लीय है तो इसे चूना डालकर ठीक किया जा सकता है। यदि मिटटी में पोषक तत्व कम हैं तो खाद डालने की आवश्यकता है।
- खेत की सफाई- खेत से खर पतवार, झाड़ियाँ और पेड़ इत्यादि हटाकर खेत को साफ कीजिये। इस काम को आप मशीनों द्वारा या लेबर लगाकर कर सकते हैं।
- खेत समतल- खेत को समतल करना आवश्यक है इससे केले के प्रतेक पौध को बराबर सिंचाई मिले और बरसात के समय में खेत से जल निकासी अच्छी हो।
- खेत की जुताई- मिटटी को भुरभुरा और उसमे मिलाये गए खाद इत्यादि को बराबर खेत में मिक्स करने के लिए जुताई करने की आवश्यकता है। खेत को जोतकर उसको समतल कर दें।
- गड्ढे – केले के पौधे लगाने के लिए गड्ढे का माप 2 फीट X 2 फीट X 1.5 फीट रखिये। लम्बे किस्म के केले के लिए पौध से पौध की दूरी 8 फीट X 8 फीट तथा छोटे किस्म के केले के लिए 6 फीट X 6 फीट की दूरी रखिये।
गड्ढे की भराई कैसे करें?
केले का गड्ढा तैयार करने के बाद उसमे हमें वर्मी कम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद गड्ढे में डालते हैं।उसके बाद फिर गड्ढे को बंद कर दीजिये।
केले की पौध की रोपाई
केले को 15 दिसंबर से 15 फ़रवरी को छोड़कर सालभर कभी भी लगाया जा सकता है। लेकिन कम पानी वाले क्षेत्रों में केले के पौधे बरसात के समय में लगाने चाहिए। इसके लिए जून माह में खेत की तयारी कर गड्ढे खोद लिए जाते हैं और जुलाई के पहले हफ्ते तक केले की पौधों की रोपाई कर देते हैं। केले की खेती छायादार स्थान में नहीं करना चाहिए।
केले की पौध की रोपाई गड्ढा भराई के एक सप्ताह बाद करें। र्पाई के समय पोलिथीन पैकेट को फाड़कर जड़ की मिटटी को बिना आघात पहुंचाए पौधों की रोपाई करें।
केले की पौधों की सिंचाई
पौध रोपण के आरंभिक काल में एक दिन छोड़कर सिंचाई करें। वैसे बरसात में केले की पौध रोपण कर रहें हैं तो बारिश का पानी ही पर्याप्त होता है फिर भी आवश्यकता पड़े तो एक दिन छोड़कर सिंचाई करें। पौध कुछ बड़े होने पर अक्टूबर से फ़रवरी तक 10 – 15 दिन में तथा मार्च से मई तक 6 – 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। केले के पौध की सिंचाई के लिए ड्रिप लाइन का प्रयोग करें।
अंतरवर्ती फसल
मेथी, धनिया, चौलाई आदि साग बैगन, अरबी, बंदगोभी. मिर्च तथा भिन्डी आदि सब्जियां तथा केले के पेड़ पड़े होने पर हल्दी अदरक केले की फसल के बीच में खली स्थान पर उगाया जा सकता है।
केले की फासला की देख रेख
- काट-छांट-
पौधे की बगल से निकलने वाली अनावश्यक पुत्तियों को 20 सेंटीमीटर बढ़ने से पहले ही जमीन की सतह से काटकर रहना चाहिए। मई- जून में हर पौधे के पास एक पुत्ती अगले वर्ष की फसल के लिए छोड़ देना चाहिए।
सुखी व कीटयुक्त पत्तियां काट लें तथा फल टिकाऊ हो जाने के बाद घार के अगले भाग में लटकते हुए नर फूल के गुच्छे को काट देना चाहिए। ज्यादा ठंडक के समय सूखी पत्त्तियों को भी न छांटें अन्यथा ठंडक से तना प्रभावित होगा।
- सहारा देना
अधिक बरसात अथवा तेज हवा चलने पर या फूल निकलने पर बांस या लकड़ी की बल्ली से केले के पेड़ों को सहारा दें। बरसात से पहले एक पंक्ति के पौधों को दोनों तरफ से मिटटी चढ़ाकर बांध देना चाहिए। केले के खेतों के चारों तरफ हवारोधी पौधे लगाने चाहिए।
निराई गुड़ाई
केलों के खेत में गुड़ाई 3 से 5 तक ही सीमित रखियें। खरपतवार नियंत्रण पुआल डालकर या या केले की ख़राब पत्तियों को काटकर उसी स्थान में बिछाकर करें।
कीट व रोग नियंत्रण
केले की मुख्य रोग हैं – पनामा म्लानि, पर्णचित्ती व् शीघ्र गुच्छा रोग।
केले में लगने वाले प्रमुख कीट – केले का घुन, पत्ती व् फल भृंग, तथा माहू।
इनके रोकथाम के उपाय निम्न प्रकार से हैं-
केले की बाग की साफ़ सफाई करते रहें। रोग रहित पौधों का चुनाव। रोग प्रभावित पौधों को उखाड़कर गढ्डा में दबा देना या जलाकर नष्ट कर देना। क्षारीय भूमि में केले की खेती न करना। जल निकारी का अच्छा प्रबंध। रोगरोधी किस्मों का प्रयोग।
मृदा ज्यादा अम्लीय होने पर प्रति 30 -37 टन चूने का प्रयोग करना। घुन लगने पर प्रति पौधों पर 30 – 50 ग्राम एल्ड्रिन का प्रयोग। फल भृंग हेतु आयोडीन 0.1% का छिडकाव। माहू नियंत्रण हेतु थयोथिमेटान, लिंडेन, डायमिथिएट या फोरट 25 ग्राम प्रति पौध पत्तियों की कक्ष पर तथा 50 ग्राम जड़ के पास प्रयोग।
फ्लावरिंग के समय ज्यादा देखभाल की जरुरत पड़ती है। जब फुल आते हैं जून माह में केले की फसल में फुल आने शुरू हो जाते हैं। इस समय बनाना बीटल नामक कीट का प्रकोप ज्यादा होता है। फसल में फुल आने से पहले chlorophyll और sapnmethine का घोल 1.5 ml प्रति लीटर के हिसाब से फसल में स्प्रे करते हैं। फिर जैसे जैसे बनाना बीटल दिखाई दे इस दबाई का स्प्रे करते रहते हैं।
केलो के फल में काले काले दाग बनाना बीटल कीड़ों की बजह से आते हैं।
फल तोड़ना
एक बार केला रोपने पर इसकी 4 से 5 फसल तक ली जा सकती है। पहली बार केला रोपण के हुआ है तो केलों पर फूल 9- 12 माह बाद आते हैं। फूल आने के लगभग 90 दिन बाद केला परिपक्वा होकर हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाता है।
केले की फलियाँ तिकोनी न रहकर पूर्ण गोलाई ले लें तो यह परिपक्वा है इसे तोड़ लेना चाहिए। केले की घार काटने के बाद उसकी ठूंठ को काटकर फेंक देना चाहिए। केले की घार को काटते समय फलियों को कोई नुकसान न पहुंचें इसका ध्यान रखना चाहिए।
फल पकाना
केला कम मात्र में होने पर चूल्हे के पर टांगकर धुएं में पकाया जा सकता है लेकिन हम बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से केला खेती कर रहे है तो हमें फल पकाने के लिए निम् उपायों को करना चाहिए –
- कार्बाइड का प्रयोग कर ।
- इथ्रेल 200 पीपीएम का छिडकाव कर ।
- हत्थों को डंठल से अलग कर कटे भाग पर इथ्रेल का प्रयोग कर।
- शीत भंडार में 20 से 21 सेंटीग्रेड तापमान पर रखकर एक समान पीले रंग के खुबसूरत केले 1 – 2 सप्ताह बाद प्राप्त कर सकते हैं। ज्यादा तापमान पर काले धब्बे बनते हैं।
फलों का भण्डारण
पके हुए केलों का भण्डारण 14 सेंटीग्रेड तापमान व् 85 -90% आद्रता पर 1 से 5 सप्ताह तक किया जा सकता है। रोबस्टा किस्म के केलों को इस तापमान पर 3 सप्ताह तक भण्डारण किया जा सकता है। जीरो एनर्जी शीतल कक्ष केलों के भण्डारण के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके आलावा सूखे पत्ते की तहों के बीच केलों को रखकर दूरस्थ बाजारों में भेजा जा सकता है ।
FAQ
Q-केले का पेड़ कितने दिन में फल देता है?
Ans- रोपाई के 12 माह बाद फूल आते हैं तथा फूल आने के लगभग 90 दिन बाद परिपक्वा फल प्राप्त होते हैं इस तरह 15 से 16 माह बाद केले का पेड़ फल देता है।
Q-केला का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?
Ans- आंद्रप्रदेश
Q-केला लगाने का सबसे अच्छा समय क्या है?
Ans – जून -जुलाई
Q-केले को घर पर जल्दी कैसे पकाएं?
Ans -कार्बाइड का प्रयोग कर
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